स्वाभिमान न्यूज़ | आँजनेय पाण्डेय, कैप खान
रायगढ़। निजी कॉलोनियों में कमजोर आय वर्ग (EWS) के लिए जमीन आरक्षित करने का नियम स्पष्ट रूप से निर्धारित है, लेकिन रायगढ़ की ग्रीन पार्क कॉलोनी में इस नियम की ऐसी व्याख्या की गई जो न सिर्फ गलत है बल्कि मिलीभगत की ओर भी इशारा करती है। कॉलोनी रायगढ़ की सीमा में विकसित की गई, लेकिन EWS के लिए दी गई जमीन 10 किलोमीटर दूर पुसौर तहसील के नावापाली गांव में केलो नदी किनारे है, जहां किसी प्रकार का आवास निर्माण संभव ही नहीं है। इससे बड़ा सवाल उठता है कि अनुमति देने वाले अधिकारियों ने इस गड़बड़ी को नजरअंदाज क्यों किया?
मेडिकल कॉलेज के सामने स्थित ग्रीन पार्क कॉलोनी को कैलाश अग्रवाल द्वारा विकसित किया जा रहा है। 94 प्लॉटों में से 70 प्लॉट बिल्डर पहले ही बेच चुका है, जबकि कॉलोनी विकास का कार्य आज तक शुरू नहीं हुआ। कैलाश अग्रवाल पिता रामनिवास अग्रवाल निवासी जगतपुर ने बड़ा अतरमुड़ा स्थित भूमि खसरा नंबर 196, 198/1, 198/3, 198/4, 198/5, 208/1, 211 और 213 कुल रकबा 8.372 हेक्टेयर को कॉलोनी और व्यावसायिक निर्माण हेतु 25 अगस्त 2008 को डायवर्सन कराया था। 2013 तक इस भूमि पर कोई निर्माण नहीं हुआ। 9 अक्टूबर 2013 को टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग ने खसरा नंबर 198/5 रकबा 1.1978 हेक्टेयर पर विकास अनुज्ञा जारी की, जिसके बाद 1 जुलाई 2014 को तत्कालीन एसडीएम ने कॉलोनी अनुमति जारी कर दी। आगे 29 नवंबर 2022 को कैलाश अग्रवाल व उनके पुत्र अभिषेक अग्रवाल ने रेरा में ग्रीन पार्क कॉलोनी का पंजीयन कराया।
नियमों के अनुसार कॉलोनी परिसर के अंदर ही कमजोर आय वर्ग के लिए उचित भूमि छोड़ना अनिवार्य है, लेकिन इस मामले में बिल्डर ने कॉलोनी की पर्याप्त भूमि मौजूद होने के बावजूद EWS के नाम पर पुसौर तहसील के नावापाली गांव में खसरा नंबर 133/2 रकबा 0.297 हेक्टेयर भूमि दी, जो कॉलोनी से लगभग 10 किलोमीटर दूर है। यह भूमि केलो नदी के किनारे स्थित है और यहां किसी भी प्रकार का आवास निर्माण संभव नहीं है। सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि शासन को दी गई यह भूमि अभी भी अभिषेक पिता कैलाश अग्रवाल के नाम पर ही दर्ज है। इस पूरी प्रक्रिया पर किसी भी अधिकारी ने आपत्ति नहीं जताई, जिससे विभागीय मिलीभगत की आशंका और गहरी होती है।
कॉलोनी परिसर से सटी हुई कैलाश अग्रवाल की अन्य भूमि भी उपलब्ध थी, जहां EWS की भूमि आसानी से छोड़ी जा सकती थी, लेकिन अफसरों और बिल्डरों ने मिलकर नियमों की मनमानी व्याख्या करते हुए उसे पुसौर की अनुपयोगी भूमि से बदल दिया। ग्रीन पार्क कॉलोनी का विकास कार्य 31 दिसंबर 2025 तक पूरा होना था, लेकिन कॉलोनी में आज तक कोई कार्य शुरू नहीं हुआ। इसके बावजूद प्लॉटों की बिक्री जारी रही और संबंधित विभागों ने एक बार भी EWS मानक का पालन सुनिश्चित नहीं कराया।
यह पूरा प्रकरण टाउन एंड कंट्री प्लानिंग, राजस्व विभाग और कॉलोनाइजेशन प्रक्रिया में गहरी सांठगांठ व अनियमितताओं की ओर संकेत करता है। अब स्थानीय लोग इस मामले की उच्च स्तरीय जांच की मांग कर रहे हैं, ताकि EWS के नाम पर की जा रही हेराफेरी पर रोक लगाई जा सके और जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई सुनिश्चित हो।

