छत्तीसगढ़ का बदलता चेहरा: नशे की गिरफ्त और बढ़ती हत्याएं

संपादक - ललित मुखर्जी के कलम से ... 

छत्तीसगढ़। एक समय था जब छत्तीसगढ़ राज्य को देशभर में शांति, भाईचारे और सौहार्द की मिसाल के रूप में देखा जाता था। यहां की मिट्टी में अपनापन था, रिश्तों में गर्माहट थी, और समाज में विश्वास था। लेकिन अब तस्वीर धीरे-धीरे बदल रही है, और यह बदलाव चौंकाने वाला है।




आज छत्तीसगढ़ के युवाओं की एक बड़ी आबादी नशे की गिरफ्त में आ चुकी है। शराब, गांजा और नशीली गोलियों की लत ने एक पूरी पीढ़ी को मानसिक रूप से खोखला कर दिया है। इस नशे की हालत में अक्सर मामूली विवाद भी बड़े अपराधों का कारण बन रहे हैं। हत्या अब आम होती जा रही है।


आश्चर्य की बात यह है कि ऐसे जघन्य अपराध अब छोटे-छोटे कस्बों और गांवों तक सीमित नहीं रहे। छत्तीसगढ़ के अपेक्षाकृत शांत माने जाने वाले क्षेत्र भी अब हत्या की खबरों से अछूते नहीं हैं।


पिछले पांच वर्षों की तुलना में हत्या की घटनाओं में वृद्धि दर्ज की गई है। लगभग हर दिन अखबारों में किसी न किसी क्षेत्र से हत्या की खबर पढ़ने को मिल जाती है। और अधिक भयावह बात यह है कि इन हत्याओं के पीछे कोई बड़ी साजिश या कारण नहीं होता, केवल नशे में चूर दिमाग और उबाल पर आया गुस्सा।


जनता अब खुद महसूस करने लगी है कि उनका वातावरण बदल चुका है। पहले जहां गांवों की गलियों में देर रात तक लोग खुलकर बैठते थे, वहीं अब अजनबी चेहरों से डर लगने लगा है।


यह केवल एक कानून व्यवस्था का संकट नहीं है, बल्कि यह सामाजिक गिरावट का संकेत है — और इससे उबरने के लिए केवल प्रशासन ही नहीं, समाज के हर वर्ग को जागरूक होना होगा।


अब वक्त आ गया है कि छत्तीसगढ़ अपनी शांति और पहचान की लड़ाई खुद लड़े। वरना यह बदलती तस्वीर आने वाली पीढ़ियों के लिए एक भयावह भविष्य का कारण बन सकती है।

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