रिपोर्ट - वेद शर्मा, 91318 46497
रायगढ़ | संवाददाता , रायगढ़ शहर के मेडिकल कॉलेज रोड क्षेत्र में जमीन की आसमान छूती कीमतों के बीच एक ऐसा चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जिसने प्रशासनिक तंत्र और कानून व्यवस्था पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। ग्राम नवापाली, तहसील पुसौर के एक आदिवासी किसान को शासन से आबंटित की गई कृषि भूमि खसरा नंबर 32/8 को नियमों को दरकिनार कर एक निजी व्यक्ति के नाम पंजीकृत कर दिया गया।
सूत्रों के अनुसार, यह रजिस्ट्री करीब 12 से 15 वर्ष पूर्व की गई थी। रजिस्ट्री में खरीदार फागुलाल सिंह, निवासी छोटे अतरमुड़ा व गुरु द्रोण स्कूल का संचालक बताया गया है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि छत्तीसगढ़ भू राजस्व संहिता 1959 के तहत आबंटित भूमि के विक्रय से पूर्व कलेक्टर की पूर्व अनुमति अनिवार्य होती है, जो इस मामले में ली ही नहीं गई। न ही कोई अदालती आदेश प्रस्तुत किया गया। इसके बावजूद, भूमि का खरीदी - बिक्री हो जाना अपने आप में एक बड़ा सवाल है कि आखिर कैसे यह फर्जीवाड़ा राजस्व विभाग की मिलीभगत के बिना संभव हुआ? इस शासन से प्राप्त भूमि कि खरीदी बिक्री में छत्तीसगढ़ भू राजस्व संहिता कि धारा 165 (7)का उल्लघन हुआ है l ऐसे स्थिति में यह जमीन पुनः शासकीय मद में दर्ज हो सकता हैl
फर्जीवाड़ा या सुनियोजित षड्यंत्र
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह सिर्फ एक 'गलती' नहीं, बल्कि सुनियोजित षड्यंत्र है। मामले में गहरी जांच की जाए तो राजस्व विभाग के उस समय के कई कर्मचारी और अधिकारी इस षड्यंत्र की जड़ में पाए जा सकते हैं। ग्रामीणों की मांग है कि इस मामले में न्यायिक जांच कराई जाए और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई हो।
कानूनी नजरिया: मामला बेहद गंभीर
राजस्व के जानकार बताते हैं कि आदिवासियों को आवंटित भूमि की बिक्री बिना वैधानिक अनुमति न केवल आदिवासी अधिकार अधिनियम 2006 का उल्लंघन है, बल्कि BNS की कई धाराओं के अंतर्गत आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी और कूटरचित दस्तावेजों के उपयोग का मामला भी बनता है। यदि मामले की निष्पक्ष जांच हो, तो न केवल रजिस्ट्री रद्द की जा सकती है, बल्कि दोषियों को जेल की सजा भी हो सकती है।