शतरंज की बिसात पर महेंद्र का हुनर, संघर्ष से सफलता तक की कहानी

छत्तीसगढ़ के पहले मूकबधिर अंतरराष्ट्रीय शतरंज खिलाड़ी ने रचा इतिहास

लेखक: हेमंत खुटे, पिथौरा ।  पंडरिया के छोटे से कस्बे में जन्मे महेंद्र पाल ने अपनी शारीरिक चुनौतियों और आर्थिक तंगी को पीछे छोड़ते हुए शतरंज की दुनिया में नई ऊंचाइयों को छुआ है। हाल ही में मैसूर में आयोजित 25वीं राष्ट्रीय बधिर शतरंज प्रतियोगिता में चौथा स्थान हासिल कर उन्होंने भारतीय टीम में जगह बनाई और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छत्तीसगढ़ का नाम रोशन किया।



संघर्षों से भरा जीवन

  • महेंद्र पाल, जो जन्म से ही मूकबधिर हैं, का जीवन कठिनाइयों से भरा रहा।
  • उनका परिवार तंगहाली में गांव में एक छोटी किराने की दुकान चलाता है।
  • पढ़ाई-लिखाई भी आर्थिक तंगी के कारण बाधित रही। उन्होंने 8वीं तक की पढ़ाई तिफरा (बिलासपुर) के मूकबधिर विद्यालय से पूरी की और 10वीं की परीक्षा ओपन बोर्ड से पास की।
  • शतरंज के प्रति रुझान चौथी कक्षा से शुरू हुआ। तखतपुर शतरंज क्लब में 5 किमी साइकिल या बाइक लिफ्ट लेकर जाना उनके दैनिक जीवन का हिस्सा बन गया।


महेंद्र की विशेष उपलब्धियां

  • राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व:
  • महेंद्र ने 14वीं से लेकर 25वीं ऑल इंडिया डेफ नेशनल चेस चैंपियनशिप में हिस्सा लिया।


अंतरराष्ट्रीय पहचान:

2018 में इंग्लैंड और 2019 में इटली में आयोजित अंतरराष्ट्रीय शतरंज प्रतियोगिताओं में भारत का प्रतिनिधित्व किया।


राज्य स्तरीय प्रतियोगिताएं:

लगभग 15-20 बार राज्य स्तरीय शतरंज प्रतियोगिताओं में भाग लिया और 1600 की इलो रेटिंग हासिल की।



कोच की प्रेरणा और महेंद्र का आत्मबल

महेंद्र के कोच रामकुमार ठाकुर ने बताया कि एक प्रतियोगिता के दौरान उनका आत्मबल गिर गया था। तब उन्होंने शतरंज सम्राट के जादुई खेलों से प्रेरणा दी, जिससे महेंद्र ने आखिरी मुकाबला जीतकर राष्ट्रीय स्तर पर धमाकेदार वापसी की।


दिग्गज खिलाड़ियों को दी मात

महेंद्र ने शतरंज की बिसात पर अच्छे-अच्छे दिग्गज खिलाड़ियों को हराया है। उनके बेमिसाल दांव-पेंच उनके विरोधियों के लिए चुनौती बनते हैं।


छत्तीसगढ़ का मान बढ़ाने वाले दिव्यांग खिलाड़ी

महेंद्र पाल छत्तीसगढ़ के पहले मूकबधिर खिलाड़ी हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदेश का मान बढ़ाया है। उनके संघर्ष और सफलता की कहानी न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि यह साबित करती है कि मेहनत और समर्पण से कोई भी सपना पूरा किया जा सकता है।


"जहां चाह, वहां राह। महेंद्र की यह कहानी हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है, जो जीवन में किसी बाधा का सामना कर रहा हो।" छत्तीसगढ़ को महेंद्र पाल पर गर्व है।

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